Tuesday, August 11, 2009

एम एम एच कालेज के दुर्दिन






ज्ञान साधक सिंह
एम एम एच कालेज के दुर्दिन - जब भगोड़ा प्रिंसिपल हो, लुटेरे उसके इर्द गिर्द और तो और आर सी तोमर जैसा फ्लाप नेता कार्यवाहक प्राचार्य जिसकी इमेज ही कालेज न आने की हो, कहाँ गए वो लोग जिन्हें मनपाल ने तैयार किया था, चाहे वह पहलवानों की हो या गुंडों की या आर्थिक लुटेरों की या चरित्रहरन करतायों की,
पर यह सब क्यों हो रहा है और किसकी वजह से हो रहा है ? कौन जिम्मेदार है इसके लिए देखेगा कौन .
अपराधी प्रवृत्ति का प्रिंसिपल अकेले महाविद्यालय को हरप गया हो, लगभग १५० शिक्षकों में से कुछेक को छोड़ दिया जाये तो सारे के सारे इस अपराधी के आगे घुटने टेके खड़े है चाहे वह पुरुष हो या महिलाएं टीचर .
टीचर आज इतना कमजोर हो जायेगा और धन पिपासु होगा यह बदलते दौर का मामला तो हो सकता है पर उसके संघर्ष के सारे मनसूबे मर जायेगे यह इसी दौर में हो रहा है. शिक्षको के ठेकेदार और लठैत जो नेता बने बैठे है क्या उनमे शिक्षक होने की लेस मात्र चरित्र बचा है वे धड़ल्ले से शिक्षक नेता होने के अरमान पूरे कर रहे है. इनकी अस्मिता यह नहीं कहती की चूरियां डाल कर सफ़ेद चादर ओढ़ कर विधवा सुहागन बने नज़र आ रहे है, शहादत की कीमत का कमीशन इनको खडा किये हुए है संसथाएं डूब रही है और ये डुबो रहे है .
दूसरी ओर समाज समाज की संवेदनाये सूख गयी है , जो इन्हें बर्दाश्त कर रहे है जिन छात्रों का इस्तेमाल करके यह शिक्षक समाज इतनी मोटी तनख्वाह ले रहा है बदले में दे रहा है बदहवासी,बेहूदगी,बदतमीजी,बदमिजाजी,आचरण हीनता, दुर्बुधि और उनके नाम पर लूट रहा है पारिश्रमिक जब इन पढ़े लिखे नौजवानों की जीविका का सवाल आता है तो, ये बनने के दौर में होते है चपरासी उसके लिए लाखों लाख का घूश और एम एम एच कालेज में चपरासी की नौकरी.
आज इन्ही चपरासियों के ऊपर या सहारे कालेज से भाग करके मनपाल सिंह अपने घर में सोकर नौकरी कर रहा है प्रिन्सपली नहीं प्रिंसपल के तो प्रिन्स्पुल होते है इनका यानि मनपाल को पैसा.
आर सी तोमर और मनपाल पुराने जुआरी है यह बात करीब करीब वह सभी लोग जानते है जो जरा भी इनके संपर्क में रहे है .
मानपाल के बारे में जो ख्याति है वह एक अच्छे ट्यूशन पढाने वाले टीचर की है, पर कालेज में इन्हें डरपोक शिक्षक के रूप में ही जाना जाता रहा है, हाँ यह अपने शुरूआती दौर के काफी आहात टीचर
रहे है संस्थापक प्राचार्य माथुर साहब ने तो इन्हें निकाल बहार भी किया था क्योंकि यह बदतमीज थे , घमंडी थे , अराजक था इसे माथुर साहब ने इसके तत्कालिन कुलपति कपूर साहब के पैर पकड़ने पर और उनके ही कहने पर पुनः ज्वाइन कराया गया.
दुसरे इसके मित्र तोमर जो बीसियों वर्षों से क्लास में गए ही नहीं वह कार्यवाहक प्राचार्य बने और इन्हें शर्म भी नहीं आयी भला शर्मायें भी कैसे जब ये भाजपा छोड़ते नहीं शरमाये जिसने इन्हें सब कुछ दिया यहाँ तक चार चार बार एम पी बनाया उसको यह आदमी छोड़ गया कहते है आर एस एस वाले पक्के होते है ये कितना कच्चा निकले.
आजकल कांग्रेस में गए है लगता है वहां कुछ हाथ नहीं लगा तो भागे भूत की लंगोट ही सही तो एम एम एच कालेज ही सही. पर इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए की घर का जोगी जुगाडिया वाह्य गाँव का संत वह दिन दूर नहीं जब बीसियों साल की बेईमानी का हिसाब संत के महाविद्यालय में इनको देना होगा .......................

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