ग़ज़ल
हम तुम न होते
तो ये रिश्ते न होते।
ये रिश्ते न होते तो
जिंदगानी के इतने किस्से न होते।
इतने रस्मो-रिवाज़ न होते
इस दुनिया के इतने हिस्से न होते।
न ज़मीं होती न आसमां होता
इस आसमां में उड़ते परिंदे न होते।
न साज़ होता न आवाज़ होती
जीवन-संगीत के इतने साजिन्दे न होते।
न ख़ुदा होता न खुदाई होती
हर जगह उसके इतने कारिन्दे न होते।
"प्रताप" अगर ये मुल्क न होता तो
हम जैसे उश्शाक सरफ़रोश बाशिंदे न होते।
तो ये रिश्ते न होते।
ये रिश्ते न होते तो
जिंदगानी के इतने किस्से न होते।
इतने रस्मो-रिवाज़ न होते
इस दुनिया के इतने हिस्से न होते।
न ज़मीं होती न आसमां होता
इस आसमां में उड़ते परिंदे न होते।
न साज़ होता न आवाज़ होती
जीवन-संगीत के इतने साजिन्दे न होते।
न ख़ुदा होता न खुदाई होती
हर जगह उसके इतने कारिन्दे न होते।
"प्रताप" अगर ये मुल्क न होता तो
हम जैसे उश्शाक सरफ़रोश बाशिंदे न होते।
are jab kuch bhee na hota to fir kyun pareshan ho rahe hain ?
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