ग़ज़ल
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें
गमे-वक्त कुछ तुम सहो, कुछ हम सहें.
ये सफ़र हो कितना भी तवील
कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें।
हादसों के सफ़र में, दर्द अपनों के
कुछ तुम सुनो, कुछ हम सुनें।
इल्ज़ाम न दो किसी और को, रश्क में
कभी तुम गिरे, कभी हम गिरे।
तसव्वुरों के खेत में काटते ख्वाबे-फ़सल
कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
रंगीन शबों से ऊबकर, तन्हा रातों से
कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
मोहब्बत की चाह लिए, खुलूसे-अंजुमन में
"प्रताप" कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
हसरतों के सहरा में उम्मीदे-गुल बनकर
कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
गमे-वक्त कुछ तुम सहो, कुछ हम सहें.
ये सफ़र हो कितना भी तवील
कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें।
हादसों के सफ़र में, दर्द अपनों के
कुछ तुम सुनो, कुछ हम सुनें।
इल्ज़ाम न दो किसी और को, रश्क में
कभी तुम गिरे, कभी हम गिरे।
तसव्वुरों के खेत में काटते ख्वाबे-फ़सल
कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
रंगीन शबों से ऊबकर, तन्हा रातों से
कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
मोहब्बत की चाह लिए, खुलूसे-अंजुमन में
"प्रताप" कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
हसरतों के सहरा में उम्मीदे-गुल बनकर
कभी तुम मिले, कभी हम मिले।
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