इसका वाजिब कारण तो किसी को पता नहीं है पर एक व्यक्ति की मानसिकता का उदहारण देता हूँ जो पूरी जिंदगी एक बड़े कालेज में प्राध्यापक रहा हो पी.जी. कालेज में पढाया हो जब जाती का ब्राह्मण रहा बिहार के चर्चित माफिया का समाधी हो और उसका परिणाम ये रहा हो की एक भी चित्रकार न बना पाया हो, कला की समझ ही न रही हो और तिकरम से पूरी जिंदगी काट दिया हो,एक चित्र न बना पाया हो. साथियों आज मै बड़ा चित्रकार हू या नहीं मै नहीं जानता पर इतना जरूर जानता हूँ की उस निक्कम्मे जाती और धर्म के नाम पर कलंक जिसने पूरे ४०-४२ वर्षों तक एक महात्मा के बनाये गरीबों गुरबों के लिए इतने बड़े महाविद्यालय को और उसके एक विभाग को जमीजर्द करके रखा न पनपा और न पनपने दिया. आपस में लोंगों को लड़ाया बच्चो को तो इतना बरबाद किया की उनकी जिंदगी में कला की सारी समझ को ही बरबाद करके रखा, नक़ल कराके पी-एच .डी .कराता रहा, कई भ्रष्ट लोंगों जिनके चरित्र जग जाहिर है का गिरोह बनाकर जितने प्रकार के भ्रष्टाचार हो सकते है सब करता और कराता रहा हो . जब ये पढ़ने पढाने में हारा तो हम पर कीचड़ उछालने की घिनौनी साजिश किया, मामला यहीं ख़तम नहीं होता. यह यह नहीं चाहता की इसके जाने के बाद भी विभाग की दशा ठीक हो .
ब्राह्मण समाज में इतना ख़राब आदमी हमने पहले कभी नहीं देखा और लगता है न की आगे दिखाई देगा एसी उम्मीद है ? इतना निकम्मा इन्सान जिसको जीवन में विद्वान होने का भ्रम पाल रक्खा है